क्या आप वास्तव में स्वतंत्र हैं?

भारत का 70वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) आने को ही है, पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस  (Independence Day) का जश्न मनाने की तैयारी ज़ोर-शोर से हो रही है | कोई पतंग उड़ाने की तैयारी में है तो कोई किसी मंच पर आज़ादी का भाषण (Independence Speech) देने की तैयारी कर रहा है | हमारे रीडर्स अक्सर यहां स्वयं को प्रेरणा (Inspiration) देने या अपने प्रश्नों के उत्तर पाने हेतु  आते हैं, परंतु आज स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) के पावन अवसर पर हम आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहते हैं जो शायद आपके मन को झकझोर कर रख दें | मेरा पहला प्रश्न आपसे यह है कि आज़ादी यानि स्वतंत्रता क्या है? (What is Independence?) आपने अपनी स्वतंत्रता के लिए क्या प्रयास किये हैं? आप सब सोच रहे होंगे कि यह कैसा विचित्र प्रश्न है, किन्तु ज़रा शान्ति से अपनी अंतरात्मा से पूछिए कि पतंग उड़ाना, तिरंगा फहराना या किसी मंच पर लोगों को भाषण द्वारा संबोधित करना, क्या केवल इन्हीं चंद शब्दों में हमारी और आपकी आज़ादी सिमट कर रह गयी है? क्या इसी को स्वतंत्रता (Freedom) कहेंगे हम?

वास्तव में अपने स्वतंत्र विचारों को अभिव्यक्त करना, बिना डरे समाज के हित में निर्णय लेना, अपने मन तथा परिवार को पुरानी दकियानूसी सोच तथा रूढ़िवादिता से मुक्त कराना, नि:स्वार्थ मन से किसी की सहायता करना ही आज़ादी (Freedom) है | अब आप बताइए कि हम में से कितने लोग वास्तव में आज़ाद या स्वतंत्र (Independent) हैं? शायद हम में से बहुतों का जवाब ना में होगा | आप या हम अक्सर अपने चारों तरफ कुछ गलत होता हुआ देखकर भी चुप रहते हैं, आवाज़ बुलंद नहीं कर पाते, ऐसा क्यों? हम क्यूँ आज भी डर के ग़ुलाम हैं? क्यूँ हमारा हौसला ऐसी वक़्त में हमारा साथ नहीं देता?
आज हम सब गाँधी जी (Mahatma Gandhi) जैसे महान व्यक्ति को याद करते हैं क्योंकि उन्होंने हमारी तथा आने वाली पीढ़ी की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया | परन्तु आज देश तो छोड़िये हमारे सामने यदि एक व्यक्ति पर भी अत्याचार हो रहा हो तो स्वयं सहायता करना तो दूर की बात है,  हम उसके बारे में पुलिस या प्रशासन को सूचित करने से भी डरते हैं | यदि कोई और उसकी सहायता करने हेतु कदम बढ़ाता है तो हम उसे भी पागल ही कहते हैं, फिर स्वतंत्रता सैनानियों (Freedom Fighters) पर गर्व क्यों है हमें?

विचार, कहने को बहुत छोटा सा शब्द है, परन्तु यदि यहीं (विचारों में) स्वतंत्रता (Freedom) नहीं है तो दोस्तों हम आज भी गुलामी ही कर रहे हैं | अंतर बस इतना है कि आज हम अंग्रेजों के आधीन न होकर अपने रूढ़िवादी विचारों के आधीन हैं | टेलीविज़न पर अगर कोई अदाकारा पुराने विचारों की बेड़ियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करती है तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ती हुई दिखाई देती है तो हम बहुत प्रसन्न होते हैं | वहीं दूसरी तरफ यदि हमारी बेटियाँ या बहनें जब पुलिस में भर्ती होने या मॉडल बनने के बारे में सोचें तो वह हमें अपराध क्यों लगता है?
स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर झांसी की रानी की कोई फिल्म देखकर दो घडी हम उसकी तारीफ़ तो करते हैं मगर ये सोचना भूल जाते हैं कि कितनी ही झांसी की रानियों को हमने अपने पुराने सड़े हुए विचारों की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है | लेकिन दोस्तों इस 21वीं सदी से बहुत पहले के समय में एक नारी ही, भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री (स्वर्गीय इंदिरा गांधी) रह चुकी है जिसने अपने शासनकाल में हमारे देश के हित में कई सुनहरे फैसले लिये हैं | हम अपने इस समाज, इस देश तथा इस समय को जिसे हम आधुनिक (मॉडर्न) कहते हैं वहाँ लड़कियों को कितना सम्मान दे रहे हैं? क्या कदम उठा रहे हैं कि उन्हें समाज बराबर का अधिकार मिले |
आज हम सब अपने बच्चों को अच्छी सीख देते हैं, स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) के महा नायक- Mahatma Gandhi, Bhagat Singh, Chandra Shekhar Azad, Sardar Patel की कहानियाँ भी उन्हें  सुनाते हैं, स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर उन्हें इन्हीं महा नायकों की तरह पोशाक पहनाकर विद्यालय भेजते हैं | उसके बाद, अगले ही दिन से हम बच्चों के डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर बनने की कामना करते हैं, किन्तु क्या हम में से एक भी माता- पिता उनके स्वतंत्रता सैनानी (Freedom Fighter) जैसा बनने को कामना करता है?
हमारे बच्चे भी इसी तरह की गुलामी के बंदी हैं | उन्हें स्वयं के सामर्थ्य पर इतना भी विश्वास (Confidence) नहीं है कि वह जो ठाने वो कर सकें | यदि वह Cricketer या Dancer बनना चाहते हैं, तो अपनी इस इच्छा को केवल समाज के तानों और नाकामी (Failure) के डर से दिल में दबाकर ही रखते हैं | क्यूँ उनमें इतनी शक्ति नहीं कि वह अपनी नाकामी से एक बेहतर सबक लेकर फिर खड़े हो सकें ? क्यूँ वह अपने डर की बेड़ियों को तोड़कर अपने स्वतंत्र दिल की आवाज़ को नहीं सुनते?
हम सभी की ज़िंदगी एक जैसी है | पढ़ना लिखना, कहीं अच्छी नौकरी, ढेर सारा पैसा कमाना, फिर शादी, परिवार बढ़ाना, और फिर परिवार को विलासिता पूर्ण जीवन शैली देने के लिए अपार पैसे के पीछे भागते रहना | पैसे की इस गुलामी की रेस में हमें पता ही नहीं चलता कि हम वास्तव में नैतिक मूल्यों तथा परिवार को पीछे छोड़ आते हैं और परिवार चार लोगों में बंट कर रह जाता है | इंसान पैसे का इस हद तक ग़ुलाम हो जाता है कि पैसा उसे जहां चाहे वहाँ ले जाता है | कभी आपने सोचा है कि दुनिया से जाने के बाद आपका यहाँ क्या रह जाएगा? क्योंकि पैसा तो आपके साथ जाएगा ही नहीं और पैसे की आधीनता में जिन अपनों को आपने पीछे छोड़ दिया वो किस लिए आपको याद करेंगे? क्योंकि सबसे बहुमूल्य चीज़ जो उन्हें केवल आप दे सकते थे “अपना समय तथा प्यार” वो तो आप दे ही नहीं पाए |

एक और कुरीति है हमारे देश में- भ्रष्टाचार जिसकी गुलामी में हमारा पूरा प्रशासन, समाज, देश, राजनेता यहाँ तक कि साधु भी जकड़े हुए हैं | यह एक ऐसी गुलामी है जिससे स्वतंत्रता पाना बहुत कठिन है, हम में से कोई भी इसके विरुद्ध आवाज़ तो उठाना दूर अपना सर तक नहीं उठाना चाहता | हम में से किसी का कोई भी कार्य अवरुद्ध हो तो हम उसे घूस देकर पूरा करवा लेते हैं, मगर उसके खिलाफ लड़ते नहीं है | कभी आपने सोचा है कि देश में कई लोग ऐसे भी हैं जिनके पास रोटी खाने के भी पैसे नहीं हैं, वो लोग कहाँ से घूस लायेंगे?
आज़ादी के अवसर पर हमारे देश की कई बेहतर खिलाड़ी जो स्वयं नारी होने पर गर्व करती हैं, ओलंपिक खेलने गयी हैं जिनका प्रदर्शन देखने के लिए हम टीवी पर नज़र गढ़ाए बैठे रहते हैं और जीतने पर भारत की जीत का जश्न भी मनाते हैं, सोचिए यदि वहाँ आपकी बेटी भी होती तो क्या आपका जश्न दोगुना नहीं हो जाता? इसी तरह यदि आपके पैसों से किसी भूखे का पेट भर जाता तो कितना सुकून प्राप्त होता आपके ह्रदय को? किसी एक भी दुःखी व्यक्ति के लिए अगर आप लड़ते तो क्या आपका ज़मीर फिर से नहीं जी उठता?
कुछ पाने के लालच में तो दुनिया भी सहायता कर ही देती है दोस्तों, कभी किसी ग़रीब की निष्फल मन से सहायता करके देखिये आपकी आत्मा सुख के अनुभव से तृप्त हो जाएगी | इन सभी गुलामियों के अतिरिक्त हम अभी और भी बहुत सी गुलामी की बेड़ियों से जकड़े हैं जिनसे यदि तुरंत लड़ा न गया तो पूरे जीवन भर शायद हम इनके आधीन ही रहेंगे |
पतंग उड़ा कर तो आप हर बार ही स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मनाते आये हैं | इस बार अपने विचारों को स्वतंत्रता दिवस मनाने का अवसर दीजिये | अकेले महात्मा गांधी ने तो पूरे देश में हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठायी थी और धीरे धीरे पूरा देश उनके साथ जुड़ गया | आप केवल किसी एक व्यक्ति की सहायता के लिए आवाज़ उठाकर देखिये, हज़ारों की मात्रा में लोग आपके साथ आएँगे | पैसा तो शायद आपको नहीं मिलेगा मगर उससे भी मूल्यवान चीज़, आप किसी की दुआओं में अपने लिए जगह अवश्य बना पाएँगे |

कुछ तो ऐसा कर, कि याद रखे दुनिया,
तेरी कुर्बानियों का जिक्र तेरे बाद रखे दुनिया,
मिट्टी में तो एक दिन सभी को मिलना है,
मगर तेरी मौत पे तुझ पर अभिमान रखे दुनिया

Credit: Story by Aasaanhai.net