अवसर प्रतीक्षा नहीं करता।

बहुत समय पहले, लगभग उस समय, जब सिकन्‍दर महान् सम्‍पूर्ण दुनिया को जीतने निकला था, लिसिपस नाम का एक बहुत ही प्रख्‍यात मूर्तिकार हुआ, जिसने “अवसर” को एक मूर्ति के रूप में निरूपित किया और उसी मूर्ति की वजह से उसका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। लिसिपस ने सम्‍भवत: उस मूर्ति का नाम “अवसर की मूर्ति” (Statue of Opportunity) रखा था।


हालांकि उस समय आज जैसी Modern Technologies उपलब्‍ध नहीं थीं, इसलिए लिसिपस की उस मूर्ति या उसके चित्र को संजोकर, सम्‍भालकर नहीं रखा जा सका, लेकिन इतिहासकारों का कहना है कि कैलिस्‍ट्राटस नाम के एक व्‍यक्ति ने उस “अवसर की मूर्ति” के चित्र को देखा था और उसका वर्णन कुछ इस तरह से किया था-

“अवसर की मूर्ति” एक अवसर को प्रतिबिम्बित करती है जिसमें एक बहुत ही सुन्‍दर युवक पर चढती जवानी का वसन्‍त छाया हुआ है। उसका माथा अनोखे तेज से चमक रहा है। उसके गाल जवानी की लालिमा से दमक रहे हैं। वह इस प्रकार खडा है, मानों अभी उडने वाला हो। उसके पैरों की उंगलियां और अंगूठे ही भूमि पर टिके हुए हैं। उसके पैरों में पंख लगे हैं और उसके लम्‍बे, सुनहरे, घुंघराले बालों का गुच्‍छा उसकी आंखों के ऊपर भौंहों तक लहरा रहे है, लेकिन उसके सिर के पीछे का हिस्‍सा बिल्‍कुल गंजा है और उस मूर्ति के हाथ में एक उस्‍तरा भी है।

जब किसी ने कैलिस्‍ट्राटस से उस मूर्ति की व्‍याख्‍या पूछी तो कैलिस्‍ट्राटस ने कहा कि-

ये मूर्ति वास्‍तव में अवसर (Opportunity) की मूर्ति है। यह कभी अपने पैरों पर आराम से खडा नहीं रहता बल्कि इसके पैरों में पंख लगे हैं, जिससे ये हमेंशा उडने को तैयार अपने पंजो पर खडा रहता है। इसके हाथों का उस्‍तरा इसकी तेज धार (तेज गति) का प्रतीक है जबकि इसके सिर के पीछे का हिस्‍सा गंजा जो इस बात को इंगित करते हैं कि इसे केवल आगे से ही पकडा जा सकता है।

कैलिस्‍ट्राटस की इस व्‍याख्‍या को थोडा सरल शब्‍दों में समझें तो जब हमें कुछ करने का अवसर प्राप्‍त होता है, कोई मौका मिलता है, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं होता, क्‍योंकि अवसर एक जवान, तेजस्‍वी व उर्जावान Feeling की तरह हमारे सामने आता है। साथ ही अवसर हमेंशा उडने के लिए पूरी तरह से तैयार अपने पंजों पर खडा रहता है, इसीलिए जब वह हमारे सामने आता है, यदि हम उसे उसी समय झपटकर उसके सामने के बालों से न पकड लें, तो बाद में उसे नहीं पकड सकते क्‍योंकि अवसर के सिर के पीछे की ओर बाल ही नहीं हैं जबकि उसकी गति उस्‍तरे की धार की तरह तेज है, इसलिए एक बार चले जाने के बाद उसे पीछे से पकडना सम्‍भव ही नहीं है।

अक्‍सर हम सभी ने कभी न कभी किसी न किसी को कहते सुना है कि उन्‍हें भी मौका मिला था लेकिन वे चूक गए। आपको अपने जीवन की भी कई ऐसी घटनाऐं याद होंगी जिन्‍हें याद करके आपको भी अफसोस होता होगा कि मौका तो आपको भी मिला था, लेकिन आपने भी Miss कर दिया, नहीं तो आपकी स्थिति भी आज कुछ और होती।

आखिर लोग अवसरों को Miss क्‍यों कर देते हैं?

लोग अवसर को इसीलिए Miss कर देते हैं, क्‍योंकि जब वह उनके सामने आता है, तब वे उसे पकडने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होते।

कारण कोई भी हो सकता है, लेकिन अन्तिम सत्‍य यही होता है कि वे पूरी तरह से तैयार नहीं होते और अवसर के चले जाने के बाद उसके लिए तैयारी करते हैं। उन्‍हें लगता है कि अब की बार जब वह अवसर आएगा, तब वे उसे नहीं जाने देंगे लेकिन एक बार जो अवसर आकर जा चुका होता है, वह दुबारा नहीं आता।

इसलिए इस संसार मे केवल वे ही लोग सफल हो सकते हैं, जिनमें प्रतिभा के साथ-साथ अवसरों को पहचानने और उन्‍हें पकडने की योग्‍यता हो।

यदि आपमें प्रतिभा है, लेकिन आप अवसरों को पहचान नहीं पाते, तो आप सफल नहीं हो सकते और यदि आप में अवसरों को पहचानने की क्षमता है, लेकिन आपमें प्रतिभा नहीं है, तब भी आप सफल नहीं हो सकते।

आज आप जितने भी सफल व्‍यक्तियों को देखते हैं, उनमें ये दोनों गुण हैं, चाहे स्‍वयं उन्‍हें इस बात का पता हो, या न हो, लेकिन यदि कोई व्‍यक्ति सफल है, तो उसमें ये दोनों गुण निश्चित रूप से होंगे ही।

सफल होने के लिए प्रतिभा का होना एक बात है, और अवसर को पहचानना एकदम दूसरी बात, जिसका स्‍वयं प्रतिभा से कोई सम्‍बंध नहीं है क्‍योंकि प्रतिभा एक ऐसी विशेषता, ऐसा गुण है, जिसे सीखकर विकसित किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए यदि आपको अंग्रेजी बोलना नहीं आता, तो अच्‍छे Teacher से Coaching करके या Training लेकर आप फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सीख सकते हैं, अथवा एक अच्‍छा तैराक बनने के लिए तैराकी के गुण को सीख कर तैरने की प्रतिभा को विकसित कर सकते हैं।

लेकिन अवसर को पहचानना और उससे फायदा उठाने की कला को सीखा नहीं जा सकता क्‍योंकि जब आपकी प्रतिभा के अनुरूप अवसर आपके दरवाजे पर आकर दस्‍तक देता है, तब स्‍वयं आपको भी इस बात का पता नहीं होता कि दरवाजे पर दस्‍तक देने वाला कौन है और वो आपको कहां पहुंचा सकता है। इस बात को समझने के लिए एक-दो घटनाओं का जिक्र कर सकते हैं, जो कि कुछ ज्‍यादा पुरानी नहीं हैं।

गूगल आज Google नहीं होता, यदि AltaVista अथवा Yahoo ने Google के Searching Concept यानी Backlink Concept को ठीक से समझा होता, क्‍योंकि Google के Founders (Larry Page and Sergey Brin) ने सबसे पहले अपने Backlink Concept को AltaVista को बहुत ही मामूली Amount के बदले बेचने की पेशकश की थी और AltaVista उस समय का सबसे ज्‍यादा Use किया जाने वाला Search Engine था।

Larry और Sergey, AltaVista के दरवाजे पर एक मौके, एक अवसर की तरह पहुंचे थे, लेकिन AltaVista के Owners, उस अवसर को पहचान ही नहीं सके और उस समय के सबसे ज्‍यादा Use होने वाले Search Engine AltaVista का आज Internet पर अस्तित्‍व ही नहीं है, जबकि यदि AltaVista ने Google के Concept को समझा होता और अवसर को पहचाना होता, तो जहां आज Google है, वहां शायद AltaVista होता। बल्कि स्थिति ये हुई कि कुछ समय बाद स्‍वयं AltaVista को Yahoo ने Acquire कर लिया। यानी AltaVista, जो कि गूगल जितना बडा बन सकता था, उसका अस्तित्‍व ही समाप्‍त हो गया क्‍योंकि वह अपने दरवाजे पर आए हुए अवसर को नहीं पहचान सका।

इसी तरह से जब AltaVista ने Google के Concept को Reject कर दिया, तो Larry Page and Sergey Brin, उस समय के दूसरे सबसे बडे Search Engine Yahoo के पास गए, जहां उनके Backlink Concept को ये कहकर ठुकरा दिया गया कि Market को एक और Search Engine की जरूरत नहीं है और आज उसी Backlink Concept पर आधारित Search Engine Google ने लगभग पूरे Search Market को अकेले Capture कर लिया है।

AltaVista की तरह ही मौका तो Yahoo को भी मिला था, लेकिन वह भी अपने दरवाजे पर आए हुए अवसर को नहीं पहचान सका और आज स्थिति ऐसी है, कि Yahoo को Search Market में अपना Share बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड रहा है।